अभ्यास :पीठ के बल आराम से लेट जायें, दोनों पैरों को सामानान्तर फैला लें अपने को स्थिर करें, अब बांये पैर को घुटने से मोडे़ तथा दोनों हथेलियों सेपकड़कर घुटने से नाक को स्पर्श करायें, इस दशा में सिर को थोड़ा सा उठा ले, लेकिन कंधा न उठे। कुछ क्षण बाद बांये पैर को पूर्ववत छोड़कर, दाहिने पैर को घुटने से पकड़कर, नाक स्पर्श करायें, कुछ क्षण बाद दाहिने पैर को छोड़ दें तथा बांये पैर से घुटने को नाक से स्पर्श करायें।
इस प्रकार बारी-बारी से स्पर्श करायें, इस क्रिया को 8-10 बार करें। इस अभ्यास को ‘पवनमुक्तासन’ कहते है।
लाभ :यह अभ्यास कमर, उदर, छाती, पैर, गला आदि अंगो का विषेश अभ्यास कराता है। इस अभ्यास से कमर अवश्य लचीली, छरहरी होती है। साथ ही साथ बढ़ा हुआ उदर भी कम होता है, हदय, फेफड़ों को बल मिलता है, थायरॉयड ग्रन्थि की कार्यप्रणाली भी सुधरती है।
पैरों से सम्बन्धित खींचाव वाले सभी अभ्यास टाँगो को सुन्दर, छरहरा बनाते है। त्रिकोणासन, शलभासन, उत्तानपादासन, ताड़ासन, पादांगुष्ठासन , धनुराषन, पैरों के लिए अति लाभकारी है। नित्य प्रति अभ्यास से आपका शरीर निश्चय ही सुन्दर, सुडौल, मोहक हो जायेगा रूप-लावण्य बढ़ेगी, आरोग्य प्राप्त होगा। पवनमुक्तासन एक अतिप्रिय एवं सर्वसुलभ आसन है। इसे नित्यप्रति करने से शरीर अति सुन्दर, स्वस्थ्य हो जाता है।
सावधानी : इस अभ्यास को धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक करें, झटके, शीघ्रता से कदापि न करें। रीढ़ के गम्भीर हड्डी रोगी इस अभ्यास को न करें, इस प्रकार उदर क्षेत्र,गले आदि में शल्य हुआ हो तो भी इस पवनमुक्तासन का अभ्यास बिना चिकित्सक, योग प्रशिक्षक के सलाह के न करें।
Yoga demonstrated by - Ajay Srivastava (DNYS, MD-AM)
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