अभ्यास : शरीर को सन्तुलित, जागरूक, मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करने वाले इस अभ्यास को नियमित करने वाले अभ्यासी का शरीर अत्यन्त लावण्ययुक्त हो जाता है, इसमें तनिक भी सन्देह नही है। आसन पर ,आराम से पेट के बल लेट जायें, पैरों को सीधे, आपस में मिले हुये सामानान्तर सीधे रखें, दोनो हाथों को कुहनियों से मोड़कर, सिर के अगल-बगल इस प्रकार मिला कर रखें की दोनो हथेलियां, दोनो कानो के अगल-बगल आसन से लगी रहें।
अब दोनो हथेलियों पर बल देकर, सिर को कंधे सहित थोड़ा सा ऊपर उठायें, इस दशा में सिर कंधे सहित ऊपर उठे नेत्रों की दृष्टि भी ऊपर की ओर रहें, लेकिन शेष शरीर छाती, पेट, पैर आदि आसन से लगे रहे। अधिक दबाव नही देना चाहियें।
थोडी देर (1-2 मिनट) रूकने के बाद, सिर को धीरे-धीरे नीचे ले आयें तथा आसन से लगा लें कुछ क्षण बाद पुनः सिर को ऊपर ले जायें, हथेलियों पर बल देकर, कंधे को थोडा सा उठायें दृष्टि ऊपर की ओर रहे। पुनः नीचे आयें इस प्रकार इस प्रक्रिया को 5-7 बार थोडी देर के अन्तराल पर करें तत्पश्ताप विश्राम करें।
लाभ : इस परम लाभदायक अभ्यास को ‘भुजंगासन’या ‘सर्पासन’कहते है। देखने में यह सरल अभ्यास, अत्यन्त लाभकारी, शरीर को आर्कषक आभा-प्रदान करने वाला है,इस अभ्यास से सुषुम्ना शीर्ष प्रभावित होता है, तथा वातवाहनियां की कार्य प्रणाली उत्तम होती है, सुषुम्ना मूल से, सुषुम्ना शीर्ष तक संचालित होता है, कंधे-गले प्रभावित हो सुडौल सुन्दर बनते है, वक्ष उन्नत पुष्ट होते है तथा पेट कम होता है।
सावधानी : इस कठिन अभ्यास को धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक करें, झटके, शीघ्रता से कदापि न करें। सिर तथा रीढ़ के विकार में इस अभ्यास को न करें, इस प्रकार उदर क्षेत्र, गले आदि में शल्य हुआ हो तो भी इस ‘भुजंगासन’या ‘सर्पासन’ का अभ्यास बिना किसी चिकित्सक, योग प्रशिक्षक के सलाह के न करें।
Yoga demonstrated by - Ajay Srivastava (DNYS, MD-AM)
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