अभ्यास : आसन पर सीधे खड़े हो, पैरो के बीच लगभग 2 फुट की दूरी रखें, दोनो हाथों को अगल-बगल कन्धे के बराबर फैला ले,अब बाँये हाथ से,बाँये पैर के घुटने को स्पर्श करें (पार्श्व में, सामने नहीं) साथ ही दाँये हाथ को सिर के ऊपर सीधे ले जायें, बाँयी तरफ, सिर, गर्दन, और दायाँ धड़ झुकायें, दायाँ ऊपर उठा हुआ हाथ भी सीधे हल्का सा बाँये झुकायें इस प्रकार दाँये भाग में खींचाव होता है, दाँया पैर, कमर, वक्ष, सभी अंगो में भरपूर खींचाव होता है ।
थोडी देर बाद सामान्यवस्था में आ जायें। इसी अभ्यास को ठीक दाँयी तरफ करें अर्थात अब कि बार बायां हाथ ऊपर उठा हो, सिर, गर्दन, और बाँया धड़ दाहिने झुका हो ।
इस प्रकार, इस अभ्यास को सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे बाँये-दाँये 4-5 बार करें, शीघ्रता से अधिक खींचाव न करें,जितना सम्भव हो आराम से अभ्यास करें, झटके से अभ्यास कभी न करें ।
लाभ : शरीर को सुन्दर, आर्कषक, लचीला, निरोग करने वाला यह अभ्यास योगाभ्यास में त्रिकोणासन कहलाता है, यह अभ्यास पैर, कमर, उदर, गले, सिर, इत्यादि अंगो के विकार को दूर करता है, बाँयी-दाँयी ओर खिचांव होने से शरीर बहुत लचीला होता है ।
सभी जोड़ो के दर्द,सायटिका आदि में आराम मिलता है। कमर का विषेश खिचांव होने से कमर की अनावश्यक चर्बी नष्ट होती है, अधिक हुआ पेट, नियमित सुन्दर आकार प्राप्त करता है, कमर पतली लचीली होती है, शरीर सुन्दर, छरहरा, आर्कषक होता है।
सावधानी : इस अभ्यास को धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक करें, झटके, शीघ्रता से कदापि न करें। रीढ़ के रोगी इस अभ्यास को न करें, इस प्रकार उदर क्षेत्र,गले आदि में शल्य हुआ हो तो भी इस त्रिकोणासन’का अभ्यास बिना चिकित्सक, योग प्रशिक्षक के सलाह के न करें ।
Yoga demonstrated by - Ajay Srivastava (DNYS, MD-AM)
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