अभ्यास : पीठ के बल आसन पर लेट जायें, हाथों को दोनों जांघों से परस्पर मिलाकर रखें, दोनों पैरों को सामानान्तर सीधे फैलाकर रखें, अब दोनों पैरो का आपस में मिलाकर, एक साथ कमर से ऊपर उठाने का प्रयास करें इस दशा में पैर लगभग 45 अंश तक ऊपर उठ जाता है। पैरों के अलावा शेष शरीर आसन से लगा रहें। थोडी देर रूकने के बाद पैरो को नीचे लें आयें, कुछ क्षण बाद पुनः पैरों को ऊपर ले जायें 2-3 मिनट रूकने के बाद को नीचे लायें।
इस प्रकार 4-5 बार इस अभ्यास को करें। पैर,उदर प्रदेष, छाती, गले, आदि अंगो का उत्तम अभ्यास कराने वाले इस आसन को ‘उत्तान पादासन’कहते है।
लाभ : देखने में यह सरल अभ्यास, रीढ की हड्डियों वात वाहनियों पर विशेष प्रभाव डालता है, इस अभ्यास से रीढ़ और सार्को-इलियक सन्धि , लम्बर, सर्विकल कषेरूकाओं तथा सुषुम्ना शीर्ष पर विषेश प्रभावी दबाव पड़ता है, जिससे सभी प्रकार के स्पाडिलाइट्सि में विशेष आराम मिलता है, वातवाहनियों की कार्यप्रणाली विशेषतः उन्नत होती है।
पैरो के अभ्यास से पैर सुन्दर, छरहरे, होते है तथा दर्द आदि नष्ट होता है, उदर प्रदेश पर दबाव होने से पेट का थुल-थुलापन नष्ट होता है, गर्भाषय, मूत्राशय, विकार भी नष्ट होता है।
सावधानी : नये अभ्यासी एक पैर से ही अदल-बदल कर अभ्यास करें, अभ्यास दृढ़ होने पर दोनों पैरों से अभ्यास करें। इस अभ्यास से रीढ़ पर विशेष दबाव पड़ता है। अतः गम्भीर रूप से, क्षतिग्रस्त रीढ़ की हड्डी के रोगी इस अभ्यास को न करें, जोर देकर इस अभ्यास को कदापि न करें।
Yoga demonstrated by - Ajay Srivastava (DNYS, MD-AM)
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